Friday, August 8, 2025

मनपा की नींद तोड़ने 'भीख मांगो आंदोलन' — मुलुंड पुल निर्माण के लिए कांग्रेस का तीखा हमला

मुलुंड, मुंबई | 6 अगस्त 2025

मुंबई महानगरपालिका की निष्क्रियता और रेलवे विभाग की सुस्ती ने जनता की सहनशीलता की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। मुलुंड पूर्व-पश्चिम पादचारी पुल का निर्माण बीते एक वर्ष से निधि अभाव के कारण ठप पड़ा है, जिससे रोज़ाना हज़ारों नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसी के विरोध में मुंबई कांग्रेस ने अनोखा और प्रतीकात्मक लेकिन तीखा आंदोलन छेड़ते हुए — मनपा को पैसे देने के लिए जनता से ‘भीख’ मांगी।



यह दृश्य किसी फिल्मी दृश्य से कम नहीं था — हाथों में कटोरे, पोस्टर, “Donate for MCGM” की तख्तियाँ और नारे गूंजते रहे:

"मनपा सोती रही, जनता रोती रही!"
"भीख मांगकर पुल बनवाएंगे — मनपा को जगाएंगे!"

कांग्रेस ने कड़ा तंज कसा — ‘देश की सबसे अमीर मनपा को भीख क्यों?’

आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मुंबई कांग्रेस के सचिव राजेश इंगले ने कहा:

मुंबई महानगरपालिका को एशिया की सबसे अमीर नगरपालिका कहा जाता है। फिर भी एक आवश्यक पादचारी पुल के लिए सालभर से वह ₹9.44 करोड़ की राशि नहीं दे पा रही? यह शर्मनाक है। हमने प्रतीकात्मक रूप से लोगों से चंदा मांगकर मनपा को आईना दिखाया है। जनता अब जाग चुकी है, मनपा को जवाब देना होगा।”



रेलवे और मनपा के बीच फुटबॉल बन गई जनता

यह पुल रेलवे की भूमि पर बन रहा है, पर इसकी ज़िम्मेदारी दोनों विभागों की है। रेलवे ने यह साफ़ किया कि जब तक मनपा निधि नहीं देती, कार्य नहीं हो सकता। दूसरी ओर मनपा दावा करती रही कि फ़ाइल प्रक्रिया में है। इस राजनीतिक और प्रशासनिक खींचतान में, पुल निर्माण पूरे एक वर्ष से रुका पड़ा है।



नतीजा — नागरिक या तो रेलवे टिकट खरीदकर मजबूरी में प्लेटफॉर्म पार करें या मीलों दूर घूमकर वैकल्पिक पुलों का उपयोग करें।

प्रभाव पड़ा आंदोलन का — निधि मिली, काम शुरू!

इस आक्रामक विरोध प्रदर्शन के दो दिन बाद ही बीएमसी प्रशासन हरकत में आया और रुकी हुई निधि जारी की गई। आंदोलन के बाद ₹3 करोड़ की निधि तुरंत जमा की गई और शेष जल्द मिलने का आश्वासन दिया गया।



मुंबई कांग्रेस प्रवक्ता भरत सोनी ने बताया कि,

हमारा आंदोलन केवल प्रतीकात्मक नहीं था, यह एक चेतावनी थी। मनपा अगर जनता की बुनियादी ज़रूरतों को नजरअंदाज़ करेगी, तो हर बार जनता ही उसे ज़वाब देगी — चाहे कटोरे से ही क्यों न हो।”



आंदोलन में कौन-कौन शामिल रहा?

इस अनोखे विरोध में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया, जिनमें शामिल थे:

  • जिला अध्यक्ष उत्तम गीते
  • एमपीसीसी प्रवक्ता राकेश शेट्टी
  • ब्लॉक अध्यक्ष श्रीकांत साठपुते
  • जेष्ठ नेता डॉ. बाबूलाल सिंह, आर.आर. सिंह
  • युवा नेता अश्विन सिंह, अजय शर्मा, राहुल मौर्य, शिवा तिवारी
  • सोशल मीडिया संयोजक धर्मेश सोनी, गणेश सनकम, संदीप ठाकुर आदि।
✍️ निष्कर्ष:
मुंबई जैसी महानगर में अगर पुल के लिए भी लोगों को ‘भीख’ मांगनी पड़े, तो यह केवल एक प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि जनता की पीड़ा पर शासन का तमाचा है। कांग्रेस ने इस आंदोलन से न केवल मनपा को झकझोरा, बल्कि भविष्य में जनता की ताकत का संदेश भी दे दिया — अब चुप नहीं बैठेंगे!




Monday, August 4, 2025

मुंबई में कबूतरखाना बंद करने के आदेश के खिलाफ शांतिपूर्ण रैली, संत का आमरण अनशन की चेतावनी

https://youtu.be/U7sdAnkxEGo

कबूतर बचाओ ... निर्दोष प्राणी बचाओ... कबूतर बचाओ ... निर्दोष प्राणी बचाओ...



4 अगस्त 2025, मुंबई

मुंबई में महानगरपालिका द्वारा कबूतरखाना बंद करने के आदेश के खिलाफ रविवार को कुलाबा जैन मंदिर परिसर से एक विशाल शांतिपूर्ण रैली निकाली गई। धार्मिक भावनाओं और जीवदया की परंपरा के समर्थन में निकली इस रैली में हज़ारों लोगों ने भाग लिया। आयोजक : समाजसेवी श्रेणिककुमार हेमराज जैन बांकली,  डीलाई रोड स्थित यंग जीवदया जैन फाउंडेशन और सुरेश पटवारी तखतगढ़ युवा मंच.  कार्यक्रम की शुरुआत नवकार मंत्र के मंगलाचरण से हुई और यह आयोजन पूज्य आचार्य विजय रैवतसूरीजी महाराज एवं राष्ट्रीय संत निलेशचंद्र विजयजी महाराज की आध्यात्मिक निश्रा में संपन्न हुआ।


संत निलेशचंद्र विजयजी महाराज ने रैली को संबोधित करते हुए चेताया कि यदि 8 अगस्त को मुंबई हाईकोर्ट का फैसला कबूतरखाने के पक्ष में नहीं आता है, तो वे 10 अगस्त रविवार को दादर कबूतरखाना पर आमरण अनशन पर बैठेंगे। उन्होंने इसे देश की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा पर चोट करार दिया।
कबूतरों को दाना देना हमारी संस्कृति है”


इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे समाजसेवी श्रेणिककुमार हेमराज जैन बांकली ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “सरकार को आंखें मूंदकर ऐसे फैसले नहीं लेने चाहिए। कबूतरों को दाना देना भारत की सदियों पुरानी संस्कृति और जीवदया पर आधारित धर्म का अभिन्न हिस्सा है।” उन्होंने इसे संवेदनहीन प्रशासनिक कदम बताया।


युवा मंच और फाउंडेशन का समर्थन
डीलाई रोड स्थित यंग जीवदया जैन फाउंडेशन और सुरेश पटवारी तखतगढ़ युवा मंच ने भी इस रैली को समर्थन दिया। इन संस्थाओं ने देशभर के जीवदया प्रेमियों से अपील की है कि वे कबूतर बचाओ अभियान” को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दें और अपने-अपने क्षेत्रों में इसे सशक्त रूप से आगे बढ़ाएं।
कानूनी पक्ष: पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम, 1960


इस मुद्दे पर कानून भी जीवों के साथ दया का समर्थन करता है। पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम, 1960 के अनुसार किसी भी पशु के साथ मारपीट, भूखा रखना, या उचित देखभाल के बिना छोड़ना कानूनी अपराध है। यह अधिनियम न केवल पशुओं के कल्याण को बढ़ावा देता है, बल्कि नागरिकों को उनके प्रति करुणा और जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।
 
निष्कर्ष
मुंबई दादर के कबूतरखानों पर उठे सवाल अब केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, धार्मिक और मानवीय मुद्दा बन चुके हैं। आने वाले दिनों में हाईकोर्ट का फैसला इस आंदोलन की दिशा तय करेगा, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि देश के हजारों जीवदया प्रेमी इस परंपरा की रक्षा के लिए एकजुट हो चुके हैं।

Popular Posts

Rakesh Shankar Shetty Reflect With Emotion on the Extraordinary Life of Dr. Babulal Singh

In a series of emotional tributes, eminent political leaders, senior social workers, and community dignitaries spoke with deep respect about...