Monday, August 4, 2025

मुंबई में कबूतरखाना बंद करने के आदेश के खिलाफ शांतिपूर्ण रैली, संत का आमरण अनशन की चेतावनी

कबूतर बचाओ ... निर्दोष प्राणी बचाओ... कबूतर बचाओ ... निर्दोष प्राणी बचाओ...



4 अगस्त 2025, मुंबई

मुंबई में महानगरपालिका द्वारा कबूतरखाना बंद करने के आदेश के खिलाफ रविवार को कुलाबा जैन मंदिर परिसर से एक विशाल शांतिपूर्ण रैली निकाली गई। धार्मिक भावनाओं और जीवदया की परंपरा के समर्थन में निकली इस रैली में हज़ारों लोगों ने भाग लिया। आयोजक : समाजसेवी श्रेणिककुमार हेमराज जैन बांकली,  डीलाई रोड स्थित यंग जीवदया जैन फाउंडेशन और सुरेश पटवारी तखतगढ़ युवा मंच.  कार्यक्रम की शुरुआत नवकार मंत्र के मंगलाचरण से हुई और यह आयोजन पूज्य आचार्य विजय रैवतसूरीजी महाराज एवं राष्ट्रीय संत निलेशचंद्र विजयजी महाराज की आध्यात्मिक निश्रा में संपन्न हुआ।


संत निलेशचंद्र विजयजी महाराज ने रैली को संबोधित करते हुए चेताया कि यदि 8 अगस्त को मुंबई हाईकोर्ट का फैसला कबूतरखाने के पक्ष में नहीं आता है, तो वे 10 अगस्त रविवार को दादर कबूतरखाना पर आमरण अनशन पर बैठेंगे। उन्होंने इसे देश की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा पर चोट करार दिया।
कबूतरों को दाना देना हमारी संस्कृति है”


इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे समाजसेवी श्रेणिककुमार हेमराज जैन बांकली ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “सरकार को आंखें मूंदकर ऐसे फैसले नहीं लेने चाहिए। कबूतरों को दाना देना भारत की सदियों पुरानी संस्कृति और जीवदया पर आधारित धर्म का अभिन्न हिस्सा है।” उन्होंने इसे संवेदनहीन प्रशासनिक कदम बताया।


युवा मंच और फाउंडेशन का समर्थन
डीलाई रोड स्थित यंग जीवदया जैन फाउंडेशन और सुरेश पटवारी तखतगढ़ युवा मंच ने भी इस रैली को समर्थन दिया। इन संस्थाओं ने देशभर के जीवदया प्रेमियों से अपील की है कि वे कबूतर बचाओ अभियान” को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दें और अपने-अपने क्षेत्रों में इसे सशक्त रूप से आगे बढ़ाएं।
कानूनी पक्ष: पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम, 1960


इस मुद्दे पर कानून भी जीवों के साथ दया का समर्थन करता है। पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम, 1960 के अनुसार किसी भी पशु के साथ मारपीट, भूखा रखना, या उचित देखभाल के बिना छोड़ना कानूनी अपराध है। यह अधिनियम न केवल पशुओं के कल्याण को बढ़ावा देता है, बल्कि नागरिकों को उनके प्रति करुणा और जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।
 
निष्कर्ष
मुंबई दादर के कबूतरखानों पर उठे सवाल अब केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, धार्मिक और मानवीय मुद्दा बन चुके हैं। आने वाले दिनों में हाईकोर्ट का फैसला इस आंदोलन की दिशा तय करेगा, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि देश के हजारों जीवदया प्रेमी इस परंपरा की रक्षा के लिए एकजुट हो चुके हैं।

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