Sunday, November 2, 2025

“अपने शरीर का डॉक्टर खुद बनें” सैकड़ों लोगों ने सीखा प्राकृतिक स्वास्थ्य...


अपने शरीर का डॉक्टर खुद बनें” सैकड़ों लोगों ने सीखा प्राकृतिक स्वास्थ्य का रहस्य

 


नितिन मणियार | वरिष्ठ पत्रकार

ठाणे : रविवार, 2 नवम्बर 2025 - वर्कशॉप में एक अलग ही ऊर्जा महसूस की जा सकती थी। पारंपरिक हेल्थ सेमिनारों से अलग, यहाँ न तो दवाइयों की चर्चा थी, न जटिल चिकित्सा की - बल्कि केंद्र में था स्वयं का शरीर, उसका संतुलन और उसकी प्राकृतिक उपचार क्षमता।

 

“Be Your Own Doctor” शीर्षक से आयोजित इस अनोखी वर्कशॉप ने लोगों के सोचने का नजरिया ही बदल दिया। इस सत्र का संचालन किया अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. संदीप सिंह, चेयरमैन – Sai Arogya Holistic Health Care ने, जिनकी सहज और वैज्ञानिक व्याख्याओं ने प्रतिभागियों को गहराई से प्रभावित किया।

 

शरीर स्वयं में सबसे बड़ा डॉक्टर है” — डॉ. सिंह

वर्कशॉप की शुरुआत डॉ. संदीप सिंह ने इस मूल मंत्र से की -

शरीर को ठीक करने की क्षमता उसके भीतर ही छिपी है; हमें केवल उसकी भाषा समझनी होती है।”

चार Nobel Prize Winning Researches पर आधारित इस सेशन में उन्होंने समझाया कि कैसे हमारे शरीर की हर कोशिका में स्वयं को पुनर्जीवित करने की शक्ति होती है। दवाइयों से नहीं, बल्कि संतुलित आहार, सही समय पर भोजन, योग, ध्यान और सकारात्मक सोच से स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है।

 

सहभागियों का अनुभव – “जैसे शरीर ने खुद बात की हो”

वर्कशॉप में शामिल हुए प्रतिभागियों ने इसे केवल एक स्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं, बल्कि जीवन परिवर्तन अनुभव बताया।
एक प्रतिभागी ने कहा -

यह पहली बार था जब किसी डॉक्टर ने दवा नहीं, शरीर की समझ सिखाई।”

सत्र में हार्मोन बैलेंसिंग एक्सरसाइज़, Stress-Buster Meditation, और Mind-Body Synchronization Techniques कराई गईं।
साथ ही, प्रतिभागियों को फ्रूट ब्रेकफास्ट, पंचामृत जूस, और गार्डन ग्रीन लंच जैसे नेचुरल हीलिंग फूड्स का व्यावहारिक अनुभव दिया गया।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भावनात्मक संतुलन

डॉ. सिंह ने बताया कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापा और तनाव जैसी समस्याएँ दवाओं से नहीं, जीवनशैली के पुनर्संतुलन से नियंत्रित की जा सकती हैं।
उन्होंने कहा -

हम दवाइयों से बीमारी को दबाते हैं, पर जीवनशैली से उसे मिटा सकते हैं। यही वास्तविक चिकित्सा है।”

वर्कशॉप का समापन लाइव प्रश्नोतरी सेशन के साथ हुआ, जहाँ लोगों ने अपने प्रश्न पूछे और व्यक्तिगत स्वास्थ्य सुधार के लिए मार्गदर्शन प्राप्त किया।

 

स्वास्थ्य से आगे – एक सामाजिक आंदोलन

यह आयोजन केवल एक वर्कशॉप नहीं था, बल्कि एक जागरूकता अभियान की तरह था - जो लोगों को स्वास्थ्य के प्रति आत्मनिर्भर बनाता है।
Sai Arogya Holistic Health Care
और The Banyan Tree International Geriatric Care & Recovery Home द्वारा आयोजित इस पहल ने “दवा-मुक्त भारत” की दिशा में एक सशक्त कदम रखा है।

 

प्रतिभागियों की सीख

  • अपने शरीर की भाषा को समझना ही उपचार की शुरुआत है।
  • भोजन, व्यायाम और विचार – तीनों का संतुलन स्वास्थ्य की कुंजी है।
  • तनाव को नियंत्रित किए बिना कोई भी चिकित्सा पूर्ण नहीं हो सकती।
  • दवा नहीं, जागरूकता ही स्थायी स्वास्थ्य देती है।

 

आयोजन का सार

संपूर्ण आयोजन में उत्साह, ऊर्जा और सकारात्मकता का ऐसा संगम देखने मिला जिसने सभी प्रतिभागियों के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
लोगों ने जाते-जाते कहा -

अब हम अपने शरीर के डॉक्टर खुद बनना चाहते हैं।”

 

संपादकीय टिप्पणी

डॉ. संदीप सिंह और उनकी टीम ने जो शुरुआत की है, वह केवल स्वास्थ्य सुधार का अभियान नहीं, बल्कि मानव चेतना के विकास की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
जब चिकित्सा व्यापार बनती जा रही है, तब ऐसी पहलें हमें यह याद दिलाती हैं कि -
शरीर का उपचार शरीर में ही है; और सबसे बड़ी दवा है – जीवन जीने की समझ।

 

कार्यक्रम सहयोगी:

  • Sai Arogya Holistic Health Care
  • Dr. Singh Corporate Wellness
  • Diabetes Free India Movement
  • The Banyan Tree International Geriatric Care & Recovery Home

🌐 www.saiarogya.com
📞 98698118844 / 9869818877


Saturday, October 25, 2025

“70 वर्षीय लीलाबाई पिपरिया के साथ अपने ही बेटों ने की धोखाधड़ी – एक माँ ...

“70 वर्षीय लीलाबाई पिपरिया के साथ अपने ही बेटों ने की धोखाधड़ी एक माँ की न्याय के लिए गुहार!

मुंबई, 24 अक्टूबर 2025 :
मुलुंड (पूर्व) की रहने वाली 70 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक श्रीमती लीलाबाई नारायण पिपरिया अपने ही बेटों और बहुओं की धोखाधड़ी, अत्याचार और मानसिक उत्पीड़न की शिकार बनी हुई हैं।
अपने जीवन की सारी पूँजी और मेहनत से घर और दुकानें खरीदने वाली यह माँ, आज न्याय की गुहार लगा रही है।

1994 में पति के निधन के बाद लीलाबाई ने अकेले ही अपने छह बच्चों को पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया और खड़ा किया। उन्होंने ईमानदारी और कड़ी मेहनत से दो घर और दो दुकानें खरीदीं। मगर आज वही बेटे - अशोक नारायण पिपरिया और किशोर नारायण पिपरिया, तथा उनकी पत्नियाँ आशा और सीमा, उन्हें उनकी ही संपत्ति से बेदखल करने की साजिश कर दी।

 

यह सब विश्वासघात, धोखाधड़ी, बनावट दस्तावेज़ तैयार करने और वरिष्ठ नागरिक अत्याचार अधिनियम 2007 के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।

लीलाबाई ने इस पूरे मामले की शिकायत नवघर पुलिस स्टेशन, मुलुंड, एसीपी, डीसीपी, मुंबई पुलिस आयुक्त, तथा मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को दी है।
उन्होंने मांग की है कि

  • बेटों और बहुओं पर IPC 406, 420, 468, 471, 500 और वरिष्ठ नागरिक संरक्षण अधिनियम 2007 के तहत केस दर्ज किया जाए।
  • उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाए।

 

पूरे इलाके में इस घटना को लेकर गुस्सा और संवेदना है। लोग कह रहे हैं
एक माँ को इंसाफ मिलना चाहिए, और जिन्होंने उसके साथ अन्याय किया है उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए!

 

🔹 समाज के लिए संदेश (सीख / समाधान):

यह कहानी सिर्फ एक माँ की नहीं है
यह उन सभी माता-पिता की है जो उम्र के अंतिम पड़ाव में अपने ही बच्चों से अपमान झेलते हैं।

👉 हर माता-पिता को संपत्ति बाँटते समय कानूनी दस्तावेज़ पक्के करने चाहिए।
👉 बच्चों द्वारा माता-पिता से धोखा या उत्पीड़न करना सिर्फ नैतिक नहीं, बल्कि कानूनी अपराध है।
👉 शासन और समाज को ऐसे मामलों में त्वरित हस्तक्षेप और न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।
👉 और सबसे जरूरी माँ-बाप का आशीर्वाद ही सबसे बड़ी संपत्ति है, ज़मीन-जायदाद नहीं।


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