मुलुंड के श्वान पालक का आरोप है के पड़ोस में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य से उत्पन्न होनेवाले रासायनिक प्रदूषण की वजह से ऐसा हुआ. मनपा और प्रदुषण नियंत्रण विभाग से की शिकायत.
पिस्ती एक प्यारी पोमेरेनियन पालतू श्वान (कुत्ती) है जिसका किडनी की बीमारी से ग्रस्त होने की वजह से इलाज चल रहा है. उसके मुलुंड के निवासस्थान के नजदीक जारी बिल्डिंग के पुनर्निर्माण कार्य से निर्माण होती सीमेंट की धुल और काले रंग की घातक रासायनिक पावडर का श्वसन और मुह से उसके शरीर में प्रवेश कर गया है जिसकी वजह से उसकी किडनिया ख़राब हो गयी है. पिस्ती के पालक ओबेरॉय परिवार के सदस्यों को इस घटना की वजह से बड़ा मानसिक आघात पहुंचा है. परिवार के चार सदस्य और पिस्ती ऐसा यह ओबेरॉय परिवार के मुलुंड पश्चिम के दो बेडरूम के प्रसन्न वातावरण के घर में पिछले छह महीनों से कालिख फ़ैल गयी है और घर में अँधेरा छाया हुआ है. रोज घर के हर कोने में काली धुल जमा हो रही है. परदे, घर का सामन और साफ़ सुथरे कपडे भी काले पड रहें हैं. हाथ, पैर और शरीर के विभिन्न अंगो को चिपकते काले द्रव्य से छुटकारा पाने के लिए शरीर पर जोरों से साबुन घिसना पड़ता है. रहस्यमयी कालिख की वजह से पिस्ती को किडनी की बीमारी से जुंझ रही है और इसी वजह से अब ओबेरॉय परिवार भी अपने स्वास्थय को लेकर चिंतित है.“हमारी पिस्ती चुलबुली और चंचल है लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसके शारीर के सफ़ेद मुलायम बाल रूखे और मैले दिखने लगे और कुछ दिनों बाद वह रंग गहरा गाढ़ा होने लगा. पड़ोस में चल रहे बिल्डिंग के पुनर्निर्माण के काम के दौरान उत्पान्न होनेवाली धुल मिटटी की वजह से ऐसा हो रहा है यह हम जानते थे. लगातार घर की साफसफाई (Deep Cleaning) और पिस्ती को नहलाने और नियमित ग्रुमिंग करने के बावजूद उसका शरीर पहले जैसा सफ़ेद नहीं हो रहा था. कुछ अवधि के बाद पिस्ती बहुत सुस्त रहने लगी, उसका वजन घटने लगा, और कमजोर दिखने लगी. इसी वजह से हम पिस्ती को उसके पशु चिकित्सक के पास ले गए. डॉक्टर भी उसके रंग और तबियत को देखकर हैरान रह गये और तत्काल उसके टेस्ट करवाए. टेस्ट के बाद पता चला के हमारे घर की धुल और रासायनिक कालिख श्वसन क्रिया और चाटने के माध्यम से उसके शारीर में प्रवेश कर गयी है जिसकी वजह से उसकी किडनीयां ख़राब हो गयी है”. ऐसा पिस्ती की पालक श्रीमती अमरजित कौर ओबेरॉय ने बताया.
“हमारे घर के नजदीकी परिसर में बहुतसी पुरानी बिल्डिंगों के पुनर्निर्माण का कार्य जोरों से चल रहा है और कई निर्माणधीन बिल्डिंगों का काम पूरा हो चूका है. इस वजह से पुनर्निर्माण और विकासकार्यों के चलते आवाज और वायु प्रदुषण होना स्वाभाविक है और इससे हमें परहेज भी नहीं हैं. पड़ोस में कई बिल्डिंगें गिराई गयी और बनायी गयी है लेकिन इस प्रकार की असुविधा का सामना हमें कभी नहीं करना पड़ा. प्रदूषण नियंत्रण के नियमों का इतना उल्लंघन और सफाई के दौरान धुल मिटटी और घातक रसायन युक्त पावडर का निपटारा करने के गलत तरीके की वजह से ऐसे दुष्परिणामों का सामना हमें करना पड रहा है. इसी वजह से हमारे घर में धुल और कालिख का साम्राज्य फैला हुआ है और हमारी पिस्ती की किडनियां ख़राब हुई है. पिस्ती के साथ हम सभी घर के सदस्य इसी वातावरण में दिनरात सांस ले रहें है और हमारे शरीरों में भी यह घातक रसायन प्रवेश कर गया होगा जिसका दुष्परिणाम भविष्य में हमें भी सहना पड सकता है”, ऐसी चिंता अमरजीत ने व्यक्त की.
पिस्ती का इलाज करनेवाले वरिष्ठ पशुवैध डॉ. उमेश करकरे का कहना है, “पिस्ती एक वयस्क श्वान है औए श्वसन और मुह से कंस्ट्रक्शन के लिए इस्तेमाल रासायनिक सामग्री का उसके शारीर में प्रवेश होने की वजह से उसका मुत्रपिंड / किडनी ख़राब हुआ है. उक्त प्रदूषित सामग्री सिमेंट, रासायनिक द्रव्य, असबेस्टोस में से कुछ भी हो सकता है. श्वसन और मुह से सेवन की वजह से ऐसे प्रदूषित द्रव्यों का शारीर में प्रवेश होना प्राणियों के साथ मानवी शारीर के लिए भी प्राणघातक है. इसलिए ओबेरॉय परिवार के साथ उनके बिल्डिंग में रहने वाले सदस्योने, विशेषतः जेष्ठ नागरिकों, ने इस विषय में सावधानी बरतनी चाहिए”.
अमरजित कौर ओबेरॉय ने स्थानिय मनपा कार्यालय (टी विभाग) और प्रदूषण नियंत्रण विभाग सायन के कार्यालयों में इस विषय में लिखित शिकायत दर्ज करवाई है लेकिन अभी तक संबंधित विभागों से कोई प्रतिसाद नहीं मिला ऐसा उनका कहना है. मानव की तुलना में प्राणियो की रोगप्रतिकारशक्ती कम होती है और ऐसे मामलों में उनके स्वास्थ्य पर तत्काल और गंभीर परिणाम होना स्वाभाविक है. मानवी शरीर में ऐसे प्रदुषण के दुष्परिणाम दीर्घ अंतराल के बाद सामने आते हैं . मुंबई में प्रदुषण नियमों का उल्लंघन करनेवाले ऐसे निरंकुश विकास कार्य की मार झेल रहे मूक भटके और पालतू जानवरों के अनगिनत घटनाएं होने की संभावना है.
No comments:
Post a Comment